हिन्दू वर्ष भारत और भारतीयता की पहचान, जिसे एक प्रकार की मानसिक गुलामी के कारण भुलाया जा रहा है? अँग्रेजी new year को तो हम बढ़े उत्साह से मनाते हैं लेकिन आज अपने हिन्दू नववर्ष को भूलते जा रहे हैं! देश में वर्तमान समय में अंग्रेजी एवं पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते हुये वर्चस्व के कारण हम लोग अपनी अनेक सांस्कृतिक पहचान एवं गतिविधियां/क्रियाकलापों को या तो भूलते जा रहे हैं या उनसे छिटक कर दूर होते जा रहें हैं!
सौ प्रतिशत दावे के साथ कहा जा सकता है कि वर्तमान में अँग्रेजी महीनों के नाम तो एक पढ़े हुये व्यक्ति से लेकर अनपढ़ व्यक्ति को ज्ञात भी होंगे, लेकिन वहीं अगर हम बात करें भारत के अपने वर्ष / कलेंडर की (जिसे अधिकतर ‘हिन्दू वर्ष’ कहा जाता है) उसके पंचांग के अनुसार महीनों के नामों की तो शायद जानकार आश्चर्य होगा कि “स्वयं को दावे के साथ हिन्दू कहने वाले और हिंदूत्व की पहचान को बचाने का दावा करने वालों को भी हिन्दू वर्ष के महीनों के नाम याद नहीं होंगे!! वैसे हो सकता है कि हिंदूत्व के दावेदार कुछ लोग हिन्दू वर्ष के महीनों के नाम भी जानते होंगे लेकिन क्रमवार नाम जानने वालों की संख्या नगण्य ही मिलेगी!
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ये लेख उन सभी भारतीयों के लिए है जिन्हें हिन्दू वर्ष के महीनों के नाम नहीं पता और वो जानना चाहते हैं। किसी हिन्दी कवि ने बड़े ही रचनात्मक ढंग से हिन्दू वर्ष के बारह महीनों के नामों का एक कविता में पिरोया है।
तो आइए आप भी इस कविता के माध्यम से हिन्दू वर्ष/भारतीय कैलेंडर के महीनों के नाम याद कर लीजिये:
जानें भारतीय महीनों के बारे में:
हिंदू वर्ष / हिन्दू पंचांग के आधार पर भी एक वर्ष में 12 महीने ही होते हैं लेकिन दिन 360 होते हैं जिसके कारण संशोधन करने के लिए प्रत्येक 3 वर्ष पश्चात किसी एक माह में 15 दिन अतिरिक्त जोड़ दिये जाते हैं और उस विशेष मास को मलमास (leap year) कहा जाता है।
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हिन्दू वर्ष के महीनों के नाम नक्षत्रों के नाम के आधार पर रखे गए हैं। हिन्दू काल गणना के आधार पर महीने की पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी के आधार पर उस महीने का नाम रखा गया है। हिंदू नववर्ष का आरंभ चैत्र मास की प्रथमा तिथि से होता है एवं वर्ष का अंत फाल्गुन माह की पुर्णिमा को होता है। हिन्दू धर्म में फाल्गुन मास की इस पूर्णिमा का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन हिन्दूओं का एक बड़ा त्यौहार होली भी मनाया जाता है।
प्रथम महीना चैत्र से गिन। राम जनम का जिसमें दिन।।
द्वितीय माह आया वैशाख। वैसाखी पंचनद की साख।।
ज्येष्ठ मास को जान तीसरा। अब तो जाड़ा सबको बिसरा।।
चौथा मास आया आषाढ़। नदियों में आती है बाढ़।।
पांचवें सावन घेरे बदरी। झूला झूलो गाओ कजरी।।
भादौ मास को जानो छठा। कृष्ण जन्म की सुन्दर छटा।।
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मास सातवां लगा अश्विन। दुर्गा पूजा घर – घर मनी।।
कार्तिक मास आठवां आए। दीवाली के दीप जलाए।।
नवां महीना आया अगहन। सीता बनीं राम की दुल्हन।।
पूस मास है क्रम में दस। पीओ सब गन्ने का रस।।
ग्यारहवां मास माघ को गाओ। समरसता का भाव जगाओ।।
मास बारहवां फाल्गुन आया। साथ में होली के रंग लाया।।
बारह मास हुए अब पूरे। छोड़ो न कोई काम अधूरे।।