“बरगद” वह वृक्ष जिसे भारत का राष्ट्रीय वृक्ष होने का सम्मान मिला है। इसे बहुवर्षीय विशाल वृक्षों के परिवार का सबसे विशाल वृक्ष माना जाता है। बरगद, पीपल, गुलर, एवं अंजीर एक ही परिवार के सदस्य हैं, “बरगद” के इस विशाल वृक्षों के परिवार में विश्व में 900 से अधिक वृक्ष प्रजातियां हैं। इन सभी वृक्षों का कुल Moraceae एवं वंश Ficus benghalensis है।
इसे ‘वट’, ‘बड़’ एवं अलग – अलग भाषाओं में आहट, वटगाच, बॉट, वडालो, बद्र, आला, अलदामारा, पेराल, बता, बारा, भौर, आलमराम, आलम, मारी, banyan आदि अनेक नाम से भी जाना जाता है। “बरगद” भारतीय भूमि का सबसे लंबी उम्र का पेड़ है।
क्योंकि इसके बीज़ सीधे जमीन पर गिर कर अंकुरित नहीं हो पाते इसीलिए “बरगद” एक Apifyte (अधिपादप) के रूप में अपना जीवन शुरू करता है। वनस्पति विज्ञान की भाषा में अधिपादप (Apifyte) उस वृक्ष कहा जाता है जब एक पौधा किसी अन्य पौधे पर उगता है या किसी भवन की दरार या नमी वाली लकड़ी की दरार में अंकुरित होकर फिर अपना जीवन आरंभ करता है।
इस पर लगाने वाले फल अंजीर जैसे होते हैं लेकिन आकार में उससे छोटे होते है फल के अंदर राई के दाने के आकार के छोटे – छोटे अनगिनत बीज होते हैं। “बरगद” का वृक्ष विशाल होने के कारण अनेक प्रकार के पक्षी और बंदर जैसे जीव इस पर अपना बसेरा बना लेता हैं। इस पर रहने वाले ये ही इन जीव-जंतुओं इसके पके हुये फलों को अपने मल के माध्यम से इसके बीजों को ऐसी – ऐसी जगह पहुँचादेते हैं जहां कोई सोच भी नहीं सकता। जीव-जंतुओं द्वारा इस प्रकार किए गए बीजों के प्रसारण को ‘सीड डिस्पर्सल’ कहते हैं।
यह भी पढ़ें: हमारे जीवन में वृक्षों का महत्व | Importance of trees in our…
बेशक ये सही है कि बरगद का वृक्ष अनेक बार किसी अन्य वृक्ष के तने पर अकुरण करता है। लेकिन इसका अर्थ यह हरगिज़ नहीं है कि यह उस वृक्ष को कोई हानी पहुंचाता है या उसके पोषण को स्वयं उपयोग कर उस वृक्ष को सूखा डटा है।
बरगद कोई परजीवी वृक्ष नहीं है अपितु यह सहजीवी वृक्ष है अर्थात यह जिस वृक्ष पर अंकुरित होता है उस वृक्ष के पोषण में बिना को रूकावट डाले, यह सीधे वातावरण की नमी एवं वर्षा के जल से अपने लिए पोषण प्राप्त करता है।
बरगद का वृक्ष जैसे – जैसे बड़ा होता है इसके तने एवं टहनियों से भी इसकी जड़े निकलने लगती हैं जो वृक्ष को मजबूती देने एवं पोषक तत्व प्राप्त करने के लिए सीधे जमीन से संपर्क बनाती है। इस प्रकार जड़ों को जो हवा में बिना संपर्क बनाए हुए वृद्धि करती उन्हें एरियल रूट कहा जाता है। धीर- धीरे इसकी ये जड़ें भी इस के तने में परवर्तित हो जाती हैं। ऐसा देखा गया है कि अनेक बार इसकी ये जड़ें अलग से भी एक वृक्ष का रूप ले लेतीं हैं।
इसकी जड़ों की इन्हीं विशेताओं के कारण प्राकृतिक आपदा या आकाशीय बिजली से मुख्य वृक्ष को हानि होने पर भी यह कभी नष्ट नहीं हो पाता, इसी कारण इसे सनातन ग्रन्थों में “अक्षय वट” भी कहा गया है । पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त वनस्पतियों के ज्ञात पुरातात्विक साक्ष्यों एवं इतिहास के आधार पर सर्वाधिक लंबी आयु इसी वृक्ष की पाई गई है।
इस वृक्ष की आयु 500 वर्ष से भी अधिक होती है। विश्व इतिहास के सबसे लंबी आयु वाले सर्वाधिक बड़े बरगद के वृक्ष भारत में ही पाए जाते हैं। इनमें से कुछ की जानकारी यहाँ दी गई हैं
- थिम्मम्मा मर्रीमनु (Thimmamma Marrimanu ) अनंतपुर में एक बरगद का पेड़ है जो 550 वर्ष से अधिक पुराना है। यह भारतीय वनस्पति उद्यान में स्थित है जो आंध्र प्रदेश के कादिरी शहर से लगभग 35 किमी दूर स्थित है।
- सबसे बड़े पेड़ों में से एक ‘ग्रेट बरगद’ भारत के कोलकाता में पाया जाता है। मान्यता है कि यह 250 साल से अधिक पुराना है। यह वट वृक्ष 67 एकड़ में फैला हुआ है।
- ऐसा ही एक और पेड़, Dodda Aalada Mara जिसे “बिग बरगद के पेड़” के रूप में जाना जाता है, कर्नाटक में बैंगलुरु के बाहरी इलाके रामोहल्ली गाँव में पाया जाता है। यह लगभग २.५ एकड़ में फैला हुआ है।
- ओड़ीसा के पुरी में जगन्नाथ मंदिर के परिसर के अंदर एक बड़ा बरगद का पेड़, कल्पबाटा है। इसे भक्तों द्वारा पवित्र माना जाता है, इसकी आयु भी 500 वर्ष से अधिक आँकी गई है।
इसकी ऐसी अनेक विशेषताओं के कारण ही “बरगद” को भारत का राष्ट्रीय वृक्ष होने का गौरव प्राप्त है।
यह भी पढ़ें: सीता अशोक (Sita Ashok) | अशोक वाटिका का पेड़
बरगद को हिंदू एवं बौद्ध धर्म में एक पवित्र वृक्ष माना गया है। हिंदू धर्म में वट को तीन प्रमुख देवताओं का प्रतीक माना जाता है – इसकी जड़ों में भगवान ब्रह्मा, मध्य में भगवान विष्णु तो शाखाओं को भगवान शिव का वास कहा गया है। इसीलिए इसे मंदिरों के आसपास प्रमुखता से लगाया जाता है।
हिंदुओं ने तो अपना एक त्यौहार वट वृक्ष को समर्पित किया हुआ है।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को ‘वट सावित्री अमावस्या’ के नाम से जाना जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि इसी दिन शनि महाराज का जन्म हुआ था।
इस दिन के साथ सावित्री-सत्यवान और बरगद की एक पौराणिक कहानी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि वटवृक्ष के नीचे ही सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण वापस लेकर पुन: जीवित किया था। उसी समय से यह व्रत ‘वट सावित्री’ के नाम से जाना जाता है। हिन्दू महिलाएं इस दिन को पवित्र मानकर ‘बरगद’ की पूजा कर अपने परिवार की समृद्धि एवं पति की लंबी आयु का आशीर्वाद पाती हैं। ।
जिस वृक्ष से लंबी उम्र की कामना की जाती हो, जिसे पूजा जाता हो, वह वृक्ष मानव जाति के लिए कितना लाभकारी होगा यह आसानी से समझा सकता है।
जहाँ वर्तमान विज्ञान इसके अनेक स्वास्थ्यवर्धक लाभों को जानकर इसका लाभ लेना चाहता है। लेकिन आयुर्वेद ने तो इसे हजारों वर्ष पहले से ही मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी और जीवन के अनेक क्षेत्रों में उपयोगी माना है।
पर्यावरण का रक्षक:
इस दौर में जब पूरी दुनिया कोरोना जैसे महामारी से घिरी हुई है और अनेक लोग सिर्फ आक्सीजन की कमी के कारण मौत के मुँह मे समा गए, ऐसे में इस वृक्ष कि उपयोगिता और बढ़ बढ़ जाती है। वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड सोखने और ऑक्सीजन छोड़ने की भी इसकी क्षमता बेजोड़ है। इस प्रकार यह हर तरह से लोगों को जीवन देता।
यह भी पढ़ें: जैव-विविधता दिवस | ‘बकस्वाहा’ जंगल को बचाने की शपथ लें
बरगद के कई स्वास्थ्य लाभ हैं:
यह अपने एंटीऑक्सीडेंट गुणों के कारण इंसुलिन स्राव को बढ़ाकर रक्त शर्करा के स्तर को सामान्य करने में मदद करता है।
बरगद में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में भी मदद करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, यह अपने गुण के कारण दस्त और महिलाओं में ल्यूकोरिया (श्वेत प्रदर) जैसी समस्याओं में उपयोगी है।
बरगद अपने सूजन प्रतिरोधी (anti-inflammatory) और एनाल्जेसिक गुणों के कारण गठिया से जुड़े दर्द और सूजन को कम करने में मदद करता है।
बरगद की छाल का लेप मसूड़ों पर लगाने से इसके सूजन प्रतिरोधी गुण के कारण मसूड़ों की सूजन कम हो जाती है।
बरगद के पत्ते बालों के लिए रामबाण हैं। इसके उपयोग से गंजापन तक दूर किया जा सकता है।
बरगद के दूध की 4-5 बूँदे बताशे मे डालकर लेने से हृदय सम्बन्धी रोग एवं दस्त के रोगी को काफी लाभ मिलता है वहीं पौरुषत्व में भी लाभकारी है।
बरगद के दूध की मालिश से चोंट-मोच की शिकायत आसानी से दूर हो जाती है।।
आदिवासी अंचल में घाव होने पर इसके पत्तो को गर्म कर बाँधा जाता है, जो शीघ्र ही घाव को भर देता है।
यह भी पढ़ें: अपनी वैक्सीन को जानें | Know your Covid-19 Vaccine
बरगद की मिट्टी:
बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी में कुल 13 सूक्ष्मजीव पाए जाते हैं जो खेती के लिए काफी लाभदायक हैं। इसमें अजोटोवेक्टर, बैसिलस, अजोसपीरल्म, सुडोमोनास, नाइट्रोजन फिक्सर, पेनिसिलियान, एसपरजीलस, ब्ल्यू ग्रीन एल्गीएसीट, फंगस, मोल्डस प्रोटोजोआ, एकटीनोमाइसटीज आदि पाए जाते हैं।
पंचगव्य, जीवामृत, बीजामृत युक्त पानी, मटका खाद, नाडेप कम्पोस्ट, गोमूत्र कम्पोस्ट और टी संजीवक आदि को जैविक खाद कहते हैं।
बरगद के नीचे की मिट्टी एक उतम जैविक खाद है। यह मिट्टी फसल के लिए गुणकारी है और इसे पेड़ के नीचे से 6 महीने में एक बार निकाल कर फसल में प्रयोग कर सकते हैं।
हिसार निवासी डॉ संजीव प्रोफेसर की नौकरी छोड़ कर किसानों और महिलाओं को जैविक खेती के लिए जागरूक करने का काम करती हैं।
इसके लिए वह संकल्प एनजीओ बनाकर लोगों को जागरूक कर रही हैं।
बरगद के नीचे की जमीन को खाद की तरह प्रयोग करने का इन्होंने शोध किया।
शोध में इस मिट्टी को फसल के लिए उत्तम जैविक खाद पाया है।
उनका दावा है कि अभी तक वह कुल 25 रिसर्च कर चुकी हैं।
अभी और काम करना है।
यह भी पढ़ें: विज्ञान और स्वास्थ्य: Covid-19 Pandemic से मिली शिक्षा
इससे पैदावार की बढ़ोतरी, अच्छी गुणवत्ता, मजबूत तना और रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी होती है। जमीन में नमी बरकरार रहती है।
पेड़ पर पक्षी मल-मूत्र करते हैं जो नीचे गिरता है जो मिट्टी में पोषक तत्व बढ़ाता है।
अभी तक केंचुआ खाद को ही जैविक खाद माना जाता है।
बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी एक उतम जैविक खाद है।
उन्होंने राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र, गाजियाबाद के डॉ. जगत सिंह और राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान नासिक के डॉ. पीके गुप्ता के मार्ग दर्शन में किए शोध में पाया कि यह मिट्टी फसल के लिए फायदेमंद है।