पिछले कई वर्षों से भारत के सोशल मीडिया में अँग्रेजी नव वर्ष पर विरोध स्वरूप पढ़ी जाने वाली कविता ‘ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं’ के रचनाकर के नाम पर है विवाद ।
पहले आप कविता ‘ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं’ के शब्दों का आनंद लें, फिर कविता के अंत में इसके विवाद के बारे में विस्तार से पढे……
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ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
उल्लास मंद है जन -मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
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ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
अनमोल विरासत के धनिकों को
चाहिये कोई उधार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं…………
है अपना ये त्यौहार नहीं
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अब जाने ‘ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं’ के रचनाकर के नाम पर विवाद के बारे में…………
विवाद ये है कि न जाने कब और किसने इस कविता के साथ प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का नाम जोड़ दिया, जबकि जाँच-पड़ताल करने पर सच्चाई कुछ और ही सामने आई है। वास्तविकता ये है कि इसके रचनाकर ‘दिनकर’ नहीं अपितु जिला रोहतक, हरियाणा के रहने वाले अंकुर ‘आनंद’ हैं।
उनके अनुसार अंकुर ने इसकी रचना दिसंबर 2012 में की थी लेकिन 2017 के बाद से अचानक न जाने किसने उनकी इस रचना को ‘दिनकर’ जी के नाम के साथ जोड़ दिया और फिर धीरे – धीरे सोशल मीडिया पर यह ‘दिनकर’ के नाम के साथ वायरल हो गई। अंकुर के अनुसार उन्होंने इसके बारे में सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म पर अनेक बार अपना विरोध दर्ज कराया है।
आगे कवि अंकुर ‘आनंद’ के ही शब्दों में पढ़िये…….
यह कविता मैंने दिसंबर 2012 में उधमपुर( जम्मू कश्मीर) पोस्टिंग के दौरान लिखी थी। प्रथम बार 31 दिसम्बर 2012 को एक हिमाचल के लाइनमैन के सेवानिवृत्ति उत्सव में इसका वाचन किया था। तभी से इस रचना को सोशल मीडिया पर पोस्ट करना आरंभ किया था। मार्च 2017 को प्रतिपदा के अवसर पर मेरी दूसरी पुस्तक ‘कलम जब ठान लेती है’ का विमोचन हुआ। उस पुस्तक में यह रचना प्रकाशित है। नया ज्ञानोदय पत्रिका में स्तंभ लिखने वाले ndtv के वरिष्ठ संपादक प्रियदर्शन ‘नया साल और नकली माल’ लेख में इस रचना के दिनकर के नाम से वायरल होने पर फरवरी 2018 के अंक में अपना वामपंथी रुदन प्रदर्शित कर चुके हैं। प्राच्य विद्याओं के उद्भट विद्वान ‘भारत वैभव’ पुस्तक के लेखक श्री ओम प्रकाश पाण्डेय ने भी इसे दिनकर जी की रचना नही माना और जानकारी के अभाव में अज्ञात कवि की रचना बताया है।
इस रचना शैली का स्तर दिनकर जी शैली से बहुत निम्न है, साहित्यिक सूझ बूझ वाले व्यक्ति उस कमी को सहज पकड़ लेते हैं क्योंकि मेरी साहित्यिक पढ़ाई लगभग शून्य है। इस रचना में अनेक स्थानों पर लय बद्धता टूटती है, छंद विधा का भी पालन नही हुआ है। और प्रत्येक रचनाकार की अपनी भाव भूमि होती है, अनेक साहित्यकारों ने इसकी विषयवस्तु देखकर ही इसे दिनकर की रचना मानने से इनकार कर दिया था। आप सोशल मीडिया पर खोज कर सकते हैं। एक ने तो टिप्पणी की कि यह अवश्य किसी संघी दिमाग की उपज है जिसे दिनकर के नाम से प्रसारित किया जा रहा है। धन्यवाद