क्या आप यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि अगर दो प्रकार की COVID –19 वैक्सीन लगवाई जाए तो क्या होता है?
जानिए दो अलग-अलग शॉट्स के सम्मिश्रण के बाद होने वाले अच्छे – बुरे प्रभावों के बारे में:
भारत में इस समय लोगों को COVID-19 वायरस से बचाने के लिए दो प्रकार के वैक्सीन एस्ट्राजेनेका की Covishield और भारत बायोटेक की Covaxin दिए जा रहे हैं।
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COVID -19 वैक्सीन का प्रथम टीका लगवाने के बाद जैसे-जैसे शरीर एंटीबॉडी बनाने में व्यस्त होता जाता है, व्यक्ति के लिए कुछ Side Effects का अनुभव होना सामान्य है। इन दोनों ही टीकों के दुष्प्रभावों में बुखार, ठंड लगना, मतली, थकान, सिरदर्द और हाथ में दर्द या बदन दर्द शामिल हो सकते हैं। ये दुष्प्रभाव आमतौर पर एक या दो दिन तक चलते हैं।
लेकिन जब COVID प्रतिरोध के टीके के दो अलग प्रकार के शॉट किसी एक ही व्यक्ति को लगाए जाएँ, तो किस तरह के दुष्प्रभाव होते हैं? इस पर शोध किया जा रहा है।
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द लैंसेट मेडिकल जर्नल में प्रकाशित ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में किए गए एक शोध के बारे में में बताया गया, कि जिन लोगों को एस्ट्राजेनेका पीएलसी के शॉट की पहली खुराक मिली दी गई थी, उन्हीं में से कुछ को उसके बाद फाइजर इंक के टीके लगाए गए। जिसके चार सप्ताह बाद अधिक अल्पकालिक साइड इफेक्ट्स की सूचना मिली, उनमें से ज्यादातर हल्के थे।
यह बताया गया कि इस तरह की कोई सुरक्षा समस्या नहीं थी और टीकाकरण के मजबूत दुष्प्रभाव कुछ दिनों के बाद गायब हो गए। शोध से पता चला है कि मिश्रित शॉट्स प्राप्त करने वाले लगभग 10 प्रतिशत प्रतिभागियों ने उन प्रतिभागियों में से लगभग 3 प्रतिशत की तुलना में गंभीर थकान की सूचना दी, जिन्हें एक ही प्रकार का टीका मिला था। इन सभी प्रतिभागियों की उम्र 50 वर्ष से अधिक थी।
शोधकर्ताओं का मानना है कि मिश्रित होने पर हर टीका प्रभावी ढंग से काम नहीं कर सकता है, लेकिन जब लक्ष्य एक ही हो, यानी वायरस का स्पाइक प्रोटीन, तो यह किया जा सकता है। इसके अलावा, वे शॉट्स के बीच 12 सप्ताह के व्यापक खुराक अंतराल का भी परीक्षण कर रहे हैं और मॉडर्न इंक और नोवावैक्स इंक से टीकों को शामिल करने के लिए अनुसंधान का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं।
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शोधकर्ता और सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी दो अलग-अलग शॉट्स को सम्मिश्रण करने जैसी रणनीतियों की जांच कर रहे हैं। क्योंकि कई निम्न और मध्यम आय वाले देश यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं, कि टीके की कमी से कैसे निपटा जाए।
शोधकर्ताओं का उद्देश्य है कि अगर दो प्रकार के वैक्सीन लगाने में सफलता मिलती है तो वैक्सीन की उपलब्धता आसान हो जाएगी और सरकारों को वैक्सीन के भंडार का प्रबंधन करना और अधिक आसान हो जाएगा।