नाग पंचमी भारत सहित नेपाल में भी हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले नागों या सांपों की पारंपरिक पूजा का विशेष दिन है। पौराणिक हिन्दू मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक वर्ष हिंदू कैलेंडर के अनुसार, श्रावण (जुलाई / अगस्त) मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का महापर्व श्रद्धा और विश्वास से मनाया जाता है।
भारत के कुछ राज्यों (राजस्थान और गुजरात आदि) में इसी महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि पर नाग पंचमी मनाते हैं। सावन मास की इस पंचमी को नागों की पूजा की जाती है इसी कारण से इस पंचमी को नाग पंचमी कहते हैं।
हिंदुओं में सावन के महीने में मुख्य रूप से भगवान शिव की पूजा का अत्यंत महत्व है, इस महीने के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को रुद्राभिषेक (शिवलिंग पर दूध और जल चढ़ाना) का प्रत्येक हिन्दू के जीवन में विशेष महत्व है। भगवान शिव को नाग अति प्रिय हैं इसी कारण वो साथ उनके गले में हार की तरह सुशोभित रहते हैं। अतः श्रावण महीने की नाग पंचमी पर नाग देवता की पूजा का न सिर्फ धार्मिक बल्कि ज्योतिषीय महत्व भी बताया जाता है। नाग पंचमी के पर्व पर शिव भक्त अपनी अनेक मंगलकामनाओं के साथ-साथ कुंडली से जुड़े कालसर्प दोष को दूर करने के लिए भी विधि–विधान से नाग देवता का पूजन और दर्शन करते हैं।
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शास्त्रनुसार इस नाग पंचमी को विधि-विधान से नागों की पूजा करने पर नागदेवता प्रसन्न हो जाते हैं। नागों की पूजा के साथ ही नाग पंचमी से संबन्धित नाग देवता की कथा का स्वयं पाठ या श्रवण करना भी शुभफलदायी होता है।
मान्यता है कि नाग पंचमी को नाग पूजा करने वाले व्यक्ति को इस दिन भूमि नहीं खोदनी चाहिए। नाग पंचमी से एक दिन पहले चतुर्थी के दिन एक बार भोजन करने के बाद शाम को भोजन करते है।
नाग पंचमी किस दिन है :
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2021 में नाग पंचमी : 13 अगस्त, दिन शुक्रवार को पड़ रही है।
पंचमी तिथि की शुरुआत : 12 अगस्त को 03:24 PM से
पंचमी तिथि की समाप्त : 13 अगस्त, 01:42 PM तक
नाग पंचमी पूजा मुहूर्त : 05:48:49 AM से 08:27:36 AM
पूजन की अवधि : 2 घंटे 39 मिनट
नाग पंचमी को कैसे करें नाग देवता की पूजा:
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं। इसीलिए नागपंचमी को मुख्य रूप से तक्षक, वासुकि, महापद्म, अनन्त, पद्म, कुलीर, कर्कोटक और शंख नामक अष्ट नागों की पूजा की जाती है। अगर इस दिन कहीं नाग न मिले और पास में कोई नाग मंदिर भी ना हो तो शिवमंदिर में जाकर भी नाग देवता की पूजा कर सकते हैं।
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पौराणिक मान्यतानुसार नाग पंचमी के दिन सर्प को दूध से स्नान और पूजन कर दूध पिलाने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
देश के अनेक राज्यों में प्राचीनकाल से हिन्दू घरों के प्रवेश द्वार पर नाग चित्र बनाने की भी परम्परा है। माना जाता है कि इससे वह घर नाग-कृपा से सुरक्षित रहता है।
नाग पंचमी पर पूजन के लिए नाग देवता या भगवान शिव के मंदिर में जाकर नाग प्रतिमा पर दूध व जल से अभिषेक करके, धुप-दीप जलाकर नाग देवता से प्रार्थना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति नाग देवता की पूजा करता है, उनके परिवार को सर्प से खतरा नहीं रहता।
नाग पूजा के मंत्र :
नागपंचमी पर नाग देवता की पूजा करते समय कुछ विशेष मंत्रो का उच्चारण करना अनिवार्य होता है। पूजा करते समय “ऊँ कुरुकुल्ये हुं फट स्वाहा” मंत्र का कम से कम 108 बार जप या उच्चारण अवश्य करना चाहिए। कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति द्वारा इस मंत्र के नियमित जप से कालसर्प दोष की शान्ति भी होती है। नाग पूजा के अन्य मंत्र निम्न है:
सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले। ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिताः। ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः। ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नमः।।
- शास्त्रनुसार नागपंचमी के प्रधान देव आठ नाग माने गए हैं। इसीलिए इस दिन तक्षक, वासुकि, महापद्म, अनन्त, पद्म, कुलीर, कर्कोटक और शंख नामक अष्टनागों की पूजा की जाती है।
- नागपचमी से पूर्व चतुर्थी के दिन एक बार भोजन करें और फिर पंचमी के दिन नाग पूजन करें एवं उपवास करके शाम को भोजन करें।
- पूजा करने के लिए नागों का चित्र लें या मिटटी की सर्प मूर्ति बना कर उसे लकड़ी की चौकी के ऊपर स्थान स्थापित करें।
- मूर्ति स्थापित करने के बाद हल्दी या रोली (लाल सिंदूर), चावल और फूल चढ़कर नाग देवता की पूजा की करें।
- पूजा के बाद बाद घी, कच्चा दूध, चीनी मिलाकर सर्प देवता को अर्पित किया जाता है।8. नाग देवता को भोग लगाने के बाद नाग पंचमी की कथा अवश्य सुननी चाहिए।
- अंत में सर्प देवता की आरती उतारी जाती है।
नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है:
नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है इस के विषय में कई कथाएं प्रचलन में है।
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पहली कथा के अनुसार बहुत समय पहले देश के एक राज्य में एक किसान अपने परिवार सहित रहता था। उस किसान के दो पुत्र और एक पुत्री थे।
एक दिन जब किसान अपना खेत जोत रहा था तो उसके हल चलाते समय हल के नीचे आने से नाग के तीन बच्चे मर गयें। अपने बच्चे मर जाने से दुखी नागिन ने शुरु में विलाप कर दु:ख प्रकट किया और फिर उसने अपनी संतान के हत्यारे से बदला लेने की सोची।
किसान से बदला लेने के लिए एक दिन रात्रि के अंधकार में नागिन ने किसान व उसकी पत्नी सहित उसके दोनों लडकों को डस लिया।
अगले दिन प्रात: किसान की पुत्री को डसने के लिये जब नागिन किसान के घर पहुँची तो उसे देखकर किसान की पुत्री ने उसके सामने दूध का कटोरा रख दिया और वह हाथ जोडकर नागिन से क्षमा मांगने लगी। किसान पुत्री के प्रेम भरे व्यवहार से प्रसन्न होकर नागिन ने उसके माता-पिता व दोनों भाईयों को पुन: जीवित कर दिया। कथानुसार उस दिन श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी, उसी दिन से नागों के कोप से बचने के लिये नाग पंचमी का पर्व मनाया जाता है।
दूसरी कथानुसार प्राचीन काल में किसी राज्य में एक सेठ के सात पुत्र थे। सभी पुत्र विवाहित थे। सेठ के सबसे छोटे पुत्र की पत्नी चरित्र की श्रेष्ठ एवं विदूषी और सुशील थी, परंतु उसके कोई भाई नहीं था।
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एक दिन घर की बड़ी बहू सभी बहुओं को साथ घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए खेतों में गई और वहाँ खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। मिट्टी खोदते समय वहाँ एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। उसका यह कृत्य देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा- ‘इसे मत मारो? यह बेचारा तो निरपराध है।’ यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा। अपनी जान बचती देख वह सर्प एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा- ‘मैं अभी लौट कर आती हैं तुम यहाँ से कहीं मत जाना। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहाँ घरेलू कार्यों में फँसकर सर्प से किया वादा भूल गई।
छोटी बहू को दूसरे दिन वह बात याद आई तो वह सर्प वाले स्थान पर पहुँची तो उसने देखा कि सर्प वहीं बैठा उसका इंतजार कर रहा था।
सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर उसने कहा- सर्प भैया नमस्कार! जबाब में सर्प ने कहा- ‘तू मुझे भैया कह रह है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता। सर्प को नाराज़ देखकर उसने कहा – भैया मुझसे भूल हो गई, अपनी बहन समझकर मुझे क्षमा कर दो, तब सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहिन हुई और मैं तेरा भाई हुआ। तुझे जो मांगना हो, माँग ले। वह बोली- भैया! मेरा कोई भाई नहीं है, अच्छा हुआ जो तुम मेरे भाई बन गए।
कुछ समय उपरांत एक दिन वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसकी ससुराल आया और बोला कि ‘मैं इसका भाई हूँ और इसे लेने आया हूँ कुछ दिन के लिए मेरी बहिन को भेज दो।’ बहू के ससुर ने कहा कि ‘इसके तो कोई भाई नहीं था, तो तू कहाँ से आया ? सर्प ने जबाब दिया – मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूँ, बचपन में ही बाहर चला गया था।
सर्प द्वारा विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी बहू को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि ‘मैं वहीं सर्प हूँ, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। उसने सर्प के कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। वहाँ के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई।
एक दिन सर्प की माँ काम से बाहर जा रही थी तो उसने उस बहू से कहा कि मेरे जाने के बाद तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे यह बात ध्यान न रही और उसने सर्प को गर्म दूध पिला दिया, जिससे उसका मुँह जल गया। यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई। परंतु सर्प के समझाने पर चुप हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेज देना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चाँदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुँचा दिया।
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छोटी बहू के साथ इतना सारा धन आया देखकर बड़ी बहू ईर्षा से जल गई और उसने कहा- तेरा भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी सोना लाना चाहिए। सर्प ने यह बात सुनी तो सब वस्तुएँ सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा- ‘इन्हें झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए’। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी।
सर्प ने छोटी बहू को बहुमूल्य मणियों से जड़ा का एक अद्भुत हार दिया। उस हार की प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि- सेठ की छोटी बहू का हार मुझे चाहिए।’ रानी की जिद के कारण राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि वह सेठ के यहाँ से हार लेकर शीघ्र उपस्थित हो। मंत्री ने सेठजी से जाकर राजा का हुक्म सुनाया और कहा कि ‘महारानी जी छोटी बहू का वह हार पहनेंगी, इसलिए वह हार उससे लेकर मुझे दे दो’। सेठ ने राजा से डर के कारण छोटी बहू से हार लेकर मंत्री को दे दिया।
छोटी बहू को अपने गले का हार किसी और को देना बहुत ही बुरा लगा, दुखी होकर उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर प्रार्थना की- भैया ! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब वह फिर से मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह हार सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी।
यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठ डर गया कि कहीं राजा कोई भयानक दंड ना दे दें? वो स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर राजा के सामने उपस्थित हुआ।
राजा ने क्रोधित होकर छोटी बहू से पूछा- तुने उस हार में क्या जादू किया है, सच-सच बता अन्यथा मैं तुझे कठोर दण्ड दूंगा।
छोटी बहू बोली- राजन ! धृष्टता क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में जाते ही सर्प बन जाता है।
यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा- अभी पहिनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया।
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यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दीं। उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा के कारण उसके पति को भड़काया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा- ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी।
तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा- यदि मेरी धर्म बहिन के आचरण पर संदेह प्रकट किया तो मैं उसे खा लूँगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है और स्त्रियाँ सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं।
नाग पंचमी के बारे में इन दोनों कथाओं के अतिरिक्त एक प्रसिद्ध कथा हिंदुओं का महाकाव्य कहे जाने वाले महाभारत में भी पाई जाती है।
यह यज्ञ यज्ञ जनमेजय द्वारा नागों के राजा तक्षक के घातक काटने के कारण अपने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए अस्तित्व में हर सांप को मारकर नागों की जाति को नष्ट करने के लिए किया गया था।
पांडवों के पौत्र और अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित की मृत्यु नागों के राजा तक्षक नामक सर्प द्वारा काटने से हुई थी। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने दुनिया के सभी सांपों को मारने के लिए अग्नि यज्ञ विद्वान ऋषियों की सहायता से विशेष रूप से एक सर्प यज्ञ का आयोजन किया। जनमेजय के द्वारा कराया गया यह यज्ञानुष्ठान इतना शक्तिशाली था कि ऋषियों द्वारा बोले जा रहे मंत्रों के उच्चारण से समस्त संसार के नाग/सर्प आकाश मार्ग से खीचे चले आ रहे थे और वह सभी सर्प ना चाहते हुये भी उस यज्ञ कुंड (यज्ञ अग्निकुंड) में गिर-गिर कर भस्म हो रहे थे।
जब यज्ञ करने वाले ऋषियों ने देखा कि और सर्प तो आ रहे हैं लेकिन जिस तक्षक ने परीक्षित को काटा और मार डाला था, वह अपनी रक्षा के लिए इंद्र की दुनिया में भाग गया था।
तब ऋषियों ने तक्षक को खींचने के लिए मंत्रों को पढ़ने की गति बढ़ा दी। तक्षक ने खुद को इंद्र के सिंहासन के चारों ओर लपेट लिया था लेकिन यज्ञ का बल इतना शक्तिशाली था कि तक्षक के साथ इंद्र भी यज्ञकुंड की ओर खींचे चले आ रहे थे।
इसने देवताओं को डरा दिया तब देवताओं ने मिलकर मनसादेवी से हस्तक्षेप करने और समस्या को हल करने की प्रार्थना की।
मनसादेवी अपने बेटे आस्तिक से यज्ञ स्थल पर जाने और जनमेजय से सर्प सत्र यज्ञ को रोकने की प्रार्थना करने का अनुरोध किया। आस्तिक ब्राह्मण का भेष बना कर जनमेजय के यज्ञ स्थल पर पहुँचा और वहाँ उसने जनमेजय को अपने सभी शास्त्रों के ज्ञान से प्रभावित किया।
जनमेजय ने आस्तिक से एक वरदान मांगने को कहा। तभी अस्तिका ने जनमेजय से सर्प सत्र को रोकने का अनुरोध किया। चूँकि जनमेजय ने ब्राह्मण रूपी आस्तिक को कुछ मांगने का वचन दे दिया था और राजा कभी भी ब्राह्मण को दिए गए वरदान को अस्वीकार करने के लिए नहीं जाना जाता, इसलिए जनमेजय यज्ञ करने वाले ऋषियों द्वारा समझाये जाने के बावजूद, नरम पड़ गया।
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तब जनमेजय द्वारा यज्ञ को रोक दिया गया और इस प्रकार इंद्र और तक्षक सहित अन्य नागों/सर्पों की जान बच गई। हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह दिन नादिवर्धनी पंचमी (श्रावण के चंद्र महीने के शुक्ल पक्ष का पांचवां दिन) हुआ था और तब से यह दिन नागों एवं सर्पों का त्योहार का दिन है क्योंकि इस दिन उनका जीवन बख्शा गया था। इसी दिन इंद्र भी मनसादेवी के पास गए और उनकी पूजा की। मान्यतानुसार इस दिन को ही नाग पंचमी के रूप में मनाया जाने लगा।
नागों के प्रसिद्ध मंदिर
केरल का नाग मंदिर जहाँ हैं नागों की हजारों मूर्तियां:
केरल के अलाप्पुझा जिले के हरिपद में बस स्टेशन से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ‘मन्नारसला श्री नागराज मंदिर’। नाग देवताओं यह मंदिर भक्तों के लिए तीर्थयात्रा का एक बहुत ही प्राचीन और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्ञात केंद्र है।
यह मंदिर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है क्योंकि इस मन्नारसला नाग मंदिर में रास्तों और पेड़ों के बीच हजारों की संख्या में नागों की मूर्तियां मौजूद हैं। इसी कारण लोग इसे नाग मंदिर के नाम से भी जानते हैं।
यह मंदिर हरे भरे जंगलों से घिरा हुआ है। नागों के इस महान तीर्थ स्थान के बारे में मान्यता है कि यहां पूजा करने से नि:संतान दम्पतियों की गोद भर जाती है और उन्हें स्वस्थ सुंदर संतान की प्राप्ति होती है।
नागचंद्रेश्वर मंदिर जो खुलता है साल में सिर्फ एक बार
मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकाल ज्योतिर्लिंग मंदिर परिसर में स्थित है नागचंद्रेश्वर का मंदिर। नागचंद्रेश्वर का मंदिर यहाँ आने वाले भक्तों के दर्शन हेतु सिर्फ साल में केवल एक बार नागपंचमी के दिन ही खोला जाता है।
ऐसी मान्यता है कि भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने वाले व्यक्ति को भविष्य में कभी सांपों का भय नहीं सताता एवं वह व्यक्ति कालसर्प दोष से भी मुक्त हो जाता है। इसी कारण नाग पंचमी के दिन लोग कालसर्प दोष को दूर करने के लिए विशेष पूजा कराने यहाँ आते हैं।