अक्षय तृतीया – अनंत शुभता की शुरुआत – कब, क्यों, कैसे ?

अक्षय तृतीया का त्यौहार देश भर में हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले सबसे शुभ एवं पवित्र दिनों में से एक है। इस दिन के बारे में हिंदुओं में ऐसी मान्यता है कि इस दिन से जो भी कार्य आरंभ किया जाता है वह हमेशा शुभ फलदायक होता है। इस प्रकार हिंदुओं में इस दिन को सौभाग्य, सफलता एवं लाभ का प्रतीक माना जाता है।

भारत के हिंदुओं के अलावा जैन धर्म के लोग भी अक्षय तृतीया को शुभ मानते हैं और वे भी इस दिन नए कार्यों को आरंभ करना शुभ फलदायक मानते हैं।

अक्षय तृतीया कब मनाई जाती है?

भारतीय पंचाग / कैलेंडर के अनुसार अक्षय तृतीया का त्यौहार वैशाख मास (होली के बाद का दूसरा माह) के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। ग्रेगोरियन/अँग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह दिन अप्रैल-मई के महीने में पड़ता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों ही अपने सबसे अच्छे नक्षत्रों में होते हैं। इस दिन को ‘अखा तीज’ के नाम से भी जाना जाता है।

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अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है?

हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में वर्णित अनेक कथाओं और पौराणिक इतिहास के अनुसार, यह दिन कई महत्वपूर्ण घटनाओं के लिए पहचाना जाता है, मान्यता है कि ये सभी घटनाएँ अलग – अलग समयान्तराल में इस विशेष दिन ही घटित हुई थीं। इसी कारण इस दिन को विशेष शुभ माना जाता है।

सबसे प्रसिद्ध घटना महाभारत में वर्णित है। जैसा कि त्यौहार के नाम से ही ज्ञात होता है कि इसका नाम है ‘अक्षय तृतीया’ है जिसमे ‘अक्षय’ का अर्थ है कभी ना समाप्त होने वाला।

महाभारत में वर्णित प्रसंग के अनुसार पांडव अपनी पत्नी द्रोपदी सहित वनों में 12 वर्ष का वनवास काट रहे थे।  उस समय वनों में पांडव भोजन की कमी के लिए परेशान थे और द्रौपदी भी वहाँ आने वाले साधू / संतों को भोजन ना करा पाने के कारण दुःखी थीं। उस समय युधिष्ठिर, जो सबसे बड़े थे, उन्होंने भगवान सूर्य की तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने उन्हें यह कटोरा दिया। इस कटोरे का फल यह था कि जब तक स्वयं द्रौपदी भोजन ना कर के तब तक वह इस कटोरे के माध्यम से किसी को भी भोजन करा सकती है।

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लेकिन एक बार जब द्रोपदी भोजन कर चुकी थी ठीक तभी ऋषि दुर्वासा अपने अनेक शिष्यों सहित आ पहुँचे और भोजन करने की इच्छा प्रकट की। उनकी इस इच्छा से पांडव एवं द्रोपदी परेशान हो गए क्योंकि द्रोपदी के भोजन उपरांत वो उस कटोरे से भोजन नहीं करा सकते थे और वो जानते थे कि अगर वो शिष्यों सहित दुर्वासा को भोजन नहीं कराएंगे तो वो क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे सकते हैं।

इस समस्या के समाधान के लिए परेशान द्रोपदी ने भगवान कृष्ण को याद किया। श्रीकृष्ण वहाँ प्रकट हुये और उस कटोरे में लगा चावल का एक दाना (जो द्रोपदी के खाने के बाद उसमें लगा रह गया था) खाकर उस कटोरे को हमेशा के लिए ‘अक्षय पात्र’ (कभी ना समाप्त होने वाला) बना दिया, ताकि अक्षय पात्र नामक वो कटोरा हमेशा उन्हें भोजन देता रहे, भले ही उन्हें पूरे ब्रह्मांड को संतृप्त करने की आवश्यकता ही क्यों ना आ जाए।

अक्षय तृतीया के बारे में इस घटना के अतिरिक्त भी अग्रलिखित अनेक कथाएँ/कहानियाँ प्रचालन में पाई जाती हैं :

  1. कहा जाता है कि विष्णु के छठे अवतार माने जाने वाले परशुराम जी का जन्म भी अक्षय तृतीया को ही हुआ था। अतः भगवान परशुराम की पूजा करने वाले इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाते हैं।
  2. एक अन्य किंवदंती में कहा गया है कि गंगा नदी इसी दिन पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। इसी कारण यह दिन गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिर एवं चारधाम यात्रा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि हिमालयी क्षेत्रों में भारी बर्फबारी से लदी सर्दियों के बाद अक्षय तृतीया के अभिजीत मुहूर्त पर ही मंदिरों के कपाट खोले जाते हैं।
  3. इस दिन कुबेर ने देवी लक्ष्मी की पूजा की थी और इस तरह उन्हें देवताओं के कोषाध्यक्ष होने का काम सौंपा गया था।
  4. माना जाता है कि इस दिन एक और महत्वपूर्ण घटना हुई थी कि सुदामा ने द्वारका में अपने बचपन के दोस्त भगवान कृष्ण से मुलाकात की और असीमित धन प्राप्त किया।
  5. कहा जाता है कि इसी दिन से महर्षि वेद व्यास ने भगवान गणेश के माध्यम से महाकाव्य महाभारत लिखना शुरू किया था।
  6. ओडिशा में, अक्षय तृतीया आगामी खरीफ मौसम के लिए धान की बुवाई शुरू करने के लिए मनाया जाता है।
  7. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के तेलुगु भाषी राज्यों में, यह त्यौहार समृद्धि से जुड़ा हुआ है और महिलाएँ सोना और आभूषण खरीदती हैं। सिंहाचलम मंदिर में इस दिन विशेष उत्सव की रस्में होती हैं।

जैन धर्म के अनुसार इसी दिन उनके यह पहले तीर्थंकर ‘भगवान ऋषभदेव’ की तपस्या के समाप्त होने पर उनके हाथों में गन्ने का रस देने की याद दिलाता है। कुछ जैन इस दिन को एक वर्षीय तप की समाप्ती के रूप में भी मनाते हैं।

अक्षय तृतीया के दिन क्या किया जाता है ?

  1. अक्षय तृतीया के दिन वैष्णव लोग व्रत रखते हैं और गरीबों को चावल, नमक, घी, सब्जियां, फल और कपड़े आदि दान कराते हैं। उसके बाद भगवान विष्णु की पुजा करके अन्न ग्रहण करते हैं।
  2. पूर्वी और उत्तरी भारत में, इस दिन आने वाली फसल के मौसम की पहली जुताई के दिन के रूप में शुरू होता है। इसी दिन से व्यवसायियों के द्वारा अगले वित्तीय वर्ष के लिए एक नई ‘ऑडिट बुक’ शुरू करने से पहले भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसे ‘बहीखाता’ के नाम से जाना जाता है
  3. सोने को सौभाग्य और धन का प्रतीक माना जाता है इसलिए इस दिन इसे खरीदना शुभ माना जाता है। अतः हिंदुओं में इस दिन बहुत से लोग सोना और उसके आभूषण खरीदते हैं।
  4. अक्षय तृतीया के दिन गंगा स्नान करना भी अत्यंत पवित्र माना जाता है।
  5. हिन्दुओं में मान्यता है कि इस दिन बिना किसी महूर्त के भी विवाह जैसा शुभ कार्य किया जा सकता है। अतः युवाओं की शादी के लिए अन्य दिनों में कोई शुभ महूर्त नहीं मिलता वो भी इस दिन बिना किसी चिंता के शादी का सकते हैं।
  6. आज के दिन हिंदुओं के घरों में मिट्टी के नए मटके का पूजन भी किया जाता है, एवं  मां अन्नपूर्णा से अच्छी उपज की कामना की जाती हैं….। आज के दिन से ही किसानों का वित्तीय वर्ष प्रारम्भ होता हैं…

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