इस वर्ष यानि आज 19 अक्टूबर 2021 को शरद पूर्णिमा (सायं 7:05 PM से) है,
वर्षा ऋतु के बाद जब शरदऋतु आती है तो आसमान में बादल व धूल के न होने से कड़क धूप पड़ती है। जिससे शरीर में पित्त कुपित होता है। इस समय गड्ढों आदि मे जमा पानी के कारण बहुत बड़ी मात्रा मे मच्छर पैदा होते हैं, इस कारण से मलेरिया होने का खतरा सर्वाधिक बढ़ जाता है।
शरदऋतु में ही हिंदुओं का महालय (पितृ श्राद्ध) यानि पितृ पक्ष आता है। पितरों का मुख्य भोजन है खीर। इस दौरान 5-7 बार खीर खाना हो जाता है। इसके बाद शरद पूर्णिमा के दिन संध्या को खीर बनाकर उसे रातभर पुर्णिमा के चाँद की चाँदनी में खुले आसमान के नीचे किसी पात्र (विशेषकर चाँदी के) में रखकर वह खीर दूसरे दिन सुबह खाई जाती है। यह खीर हमारे शरीर में पित्त का प्रकोप कम करती है।
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आज के दिन चन्द्रमा विशेष बलशाली होता है, जिसके कारण उसकी किरणों से प्राप्त खीर विशेष गुणों से युक्त होती है।
शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर अस्थमा रोगियों को खिलाने की प्रथा से तो सब परिचित हैं, लेकिन यहाँ हम बात कर रहे हैं “शरद पूर्णिमा पर बनी खीर में वैज्ञानिकता की”। अगर हम गहराई से अध्यन करें तो हमारी हर प्राचीन परंपरा में वैज्ञानिकता का दर्शन होता है, अज्ञानता का नहीं। पर यह बात हमें बाद में समझ में आती है। श्राद्ध से लेकर शरद पूर्णिमा तक जो खीर हम खाते हैं वह हमें कई तरह के फायदे पहुंचाती है।
एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है।
अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।
अब हमारी परंपराओं का चमत्कार देखिए। क्यों खीर खाना इस मौसम में अनिवार्य हो जाता है। वास्तव में खीर खाने से पित्त का शमन होता है।
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शरद पूर्णिमा की रात में बनाई जाने वाली खीर के लिए चाँदी का पात्र न हो तो चाँदी का चम्मच ही खीर में डाल दे, लेकिन बर्तन मिट्टी, कांसा या पीतल का हो। (स्टील, एल्यूमिनियम, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी के बर्तनों से बचें)
इस ऋतु में बनाई जाने वाली खीर में केसर और मेवों का प्रयोग कम करें। यह गर्म प्रवृत्ति के होने से पित्त बढ़ा सकते हैं। हो सके तो सिर्फ इलायची और चिरौंजी व जायफल अवश्य डालें।
इस रात को हजार काम छोड़कर 15 मिनट चन्द्रमा को एकटक निहारना। चन्द्रमा को देखते हुये एक-आध मिनट आँखें फड़फड़ाना। ज्यादा नहीं तो कम-से-कम 15 मिनट चन्द्रमा की किरणों का फायदा लेना।
इससे 40 प्रकार की पित्तसंबंधी बीमारियों में लाभ होगा, शांति होगी। फिर छत पर या मैदान में विद्युत का कुचालक आसन बिछाकर लेटे-लेटे भी चंद्रमा को देख सकते हैं।
जिनको नेत्रज्योति बढ़ानी हो वे शरद पूनम की रात को सूई में धागा पिरोने की कोशिश करें।
इस रात्रि में ध्यान-भजन, सत्संग कीर्तन, चन्द्रदर्शन आदि शारीरिक व मानसिक आरोग्यता के लिए अत्यन्त लाभदायक हैं।
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शरद पूर्णिमा की शीतल रात्रि में (9 से 6 बजे के बीच) छत पर चन्द्रमा की किरणों में महीन कपड़े से ढँककर रखी हुई दूध-पोहे अथवा देशी गाय के दूध-चावल की खीर अवश्य खानी चाहिए।
लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चाँदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।
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प्रो. (डॉ.) महेश कुमार दाधीच, प्रिंसिपल, एम एस एम आयुर्वेद संस्थान एवं डीन फैकल्टी ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन बीपीएस महिला विश्वविद्यालय, खानपुर कलां, सोनीपत, हरियाणा (भारत)