‘पुण्यपथ’ अपने पाठकों के लिए सर्वेश तिवारी ‘श्रीमुख’ की कलम से निकला एक और तौहफा। सर्वेश तिवारी ‘श्रीमुख’ की लेखन शैली ऐसी है कि जिन्होंने भी परत को पढ़ा है वे पुण्यपथ को पढ़कर ही समझ जाएंगे कि इसके लिखने वाले भी सर्वेश तिवारी ‘श्रीमुख’ ही हैं।
आज के दौर में कुछ भी लिखने और लेखक होने की इस भेड़ चाल में सर्वेश तिवारी को आप निश्चित रूप से अलग और विशेष पाते हैं! ‘परत’ के बाद ‘पुण्यपथ’ सर्वेश तिवारी का दूसरा उपन्यास है जिसमें लोक अस्मिता को बनाये व बचाये रखने के लिए वो सबकुछ लिखा गया जो आज के दौर में अतिआवश्यक है।
पुण्यपथ का कथानक केन्द्रित है एक विस्थापित हिन्दू परिवार की व्यथा और उसकी परेशमियों पर। ये परिवार पाकिस्तान से भारत लौट कर आया है। एक ऐसा परिवार जिसने अनेकानेक यातनाओं को झेला और उन्हें अपनी नियति मानकर खामोशी से सहता रहा।
एक ऐसा परिवार जिसके सदस्य प्रतिदिन खौफ के साये में डर-डर कर जीते रहें।
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इस बार सर्वेश ने अपने कथानक में पाकिस्तान के हिंदू अल्पसंख्यकों का मुद्दा उठाया है। वो हिंदू अल्पसंख्यक जो सुरक्षा और जीवन की बेहतर संभावनाओं की तलाश में भारत की तरफ देखते हैं! और उनमे से ही कुछ हिम्मत करके इस आस में भारत चले आते हैं कि ये उनका भी देश है और यहाँ शायद उनका भविष्य भी सुरक्शित हो जाए!!
पाकिस्तान के हिंदू अल्पसंख्यकों का दर्द एक ऐसा विषय था जिस पर तब भी चर्चा नहीं हुई थी जब भारत में सीएए-एनआरसी के इर्द-गिर्द फर्जी बयानबाजी की जा रही थी।
पाकिस्तान में गैर मुस्लिमों विशेषकर हिंदुओं पर हो रहे बर्बर अत्याचार से सताए गए उन हिंदुओं का क्या होता है जो सुरक्शित भविष्य की आशा से भारत आते हैं?
क्या हिंदुओं के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें और दावे करने वाले हम भारत के हिन्दू आज तक अपने उन भाइयों के साथ कोई न्याय कर पाए हैं?
राजनीति करने के लिए हम कुछ भी दावे करें लेकिन दिल से हम जानते हैं कि इन सवालों का जवाब हमारे पास नहीं है।
इसलिए उपन्यास अपने पाठकों को कड़ी टक्कर देता है। सर्वेश इस विषय के साथ न्याय करने में सफल रहे हैं। हमें उम्मीद है कि यह फिर से उनके पिछले उपन्यास की तरह बेस्टसेलर होगा।
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खौफ के साये में जिंदगी काट रहा वह परिवार जो अपने खिलाफ हुए/हो रहे बर्बर अत्याचार पर कुछ बोलना या मुँह खोलना तो दूर, ये सोचने तक की भी हिम्मत नही जुटा पाता।
पुण्यपथ ठीक वही पथ है जिस पथ पर पुण्य चले। जहाँ धर्म ही सबसे बड़ा हो। जहाँ धर्म इतना धार्मिक हो कि अंजान और पहचान में अंतर ना करे। जहां विस्थापितों को स्थापित करने की ललक हो।
धर्म ऐसा कि भ्रष्ट भी पसीज जाए। धर्म ऐसा की उसकी कही बात पत्थर की लकीर हो। धर्म वो जो अपने समय के लिए जतन किए हुए सुखों को, दीन हीन पर न्योछावर कर दे।
पुण्यपथ ऐसा ही पथ है। जहां राष्ट्रवाद झलकता हो।
जहाँ का राष्ट्रवाद इतना मुखर हो कि विदेश में रह रहे लोग भारत की जयकार कर रहे हों।
पुण्यपथ का लेखक और उसके पाठक, लिखते व पढ़ते समय अपने देश की जयकार मन ही मन कर रहे हों।
पुण्यपथ वही पथ है जो यह सिद्ध कर रहा है कि मनुष्य के भीतर यदि धर्म हो तो वह कहीं भी स्थापित हो सकता है।
उसकी मदद कोई करे ना करे, धर्म उसकी मदद जरूर करेगा।
पुण्यपथ अपवादों और विवादों के बीच अपना एक ऐसा पथ तैयार करता है जो सीधे देवत्व को प्राप्त करे। जो केवल और केवल धर्मपरायण होना सीखाता है।
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जो मोमिनों और मौलवियों को यह समझाता है कि सनातन के बच्चे ही हो तुम लोग। सनातन आज भी तुम्हारे बाप-दादाओं का बाप है। तुम व्यक्ति को बदल सकते हो, उसका चरित्र बदल सकते हो लेकिन उसका धर्म तब तक नही बदल सकते हो जबतक वो तुम्हारा अन्न खाकर नीच ना हो जाए। यदि वह समय पर ही तुम्हारा प्रतिकार कर दे तो वह तुम्हारी भी बजा सकता है।
‘पुण्यपथ’ पढ़िए क्योंकि इसमें हर्ष, विषाद, कष्ट, सिहरन, आंसू, खुशी, सुख और बौद्धिक विकास सबकुछ मिलेगा। ‘पुण्यपथ’ पढ़िए, क्योंकि इसमें आपको आपका भारत, आपका धर्म दिखाई देगा।
‘पुण्यपथ’ पढ़िए, आपको भारत के भीतर भारत के प्रति होता हुआ षड्यंत्र दिखाई देगा।
‘पुण्यपथ’ इसलिए भी पढ़िए क्योंकि एक विस्थापित परिवार को आप के भारत ने शरण दी है। गर्व का विषय है न आप सभी के लिए, इसलिए ‘पुण्यपथ’ पढ़िए।
उपन्यास का नाम : | पुण्यपथ (Punya Path) |
लेखक : | सर्वेश तिवारी ‘श्रीमुख’ (Sarvesh Tiwari ‘Sreemukh’) |
प्रकाशक : | HARF PUBLICATION (9625255734) |
पेपरबैक : | 142 पेज़ |
प्रथम संस्करण : | 11 July 2021 |
भाषा : | हिंदी |
लेखक के बारे में :
सर्वेश तिवारी ‘श्रीमुख’ लोक अस्मिता के लेखक है! भारत ओर भारतीयता की उँगली थामे ये एक ऐसे साहित्यकार के रूप में उभर रहे हैं जो इस कर्तव्यबोध के साथ लिखता है। जिसके लेखन के अर्थ में लोक की पीड़ा पर षड्यंत्रकारी चुप्पी के कालखंड में, बोलना ही धर्म है! सर्वेश विवादग्रस्त होने के भय से सत्य का उदघाटन करना नही छोड़ते!