स्नेह के आँसू | Tears of Affection

“स्नेह के आँसू”  किसी की आँखों में यूं ही नहीं आते, ना कोई अपनी जानकार अपनी आँखों में स्नेह के आँसू यानि Tears of Affection ला सकता है। इस कोरोना महामारी में ये स्नेह के आँसू  अचानक ही अपनेपन की सच्ची पहचान करा गए।

गली से गुजरते हुए सब्जी वाले ने तीसरी मंजिल की घंटी का बटन दबाया।

ऊपर से बालकनी का दरवाजा खोलकर बाहर आई महिला ने नीचे देखा।

“बीबी जी ! सब्जी ले लो, बताओ क्या – क्या देना है। आपने कई दिनों से सब्जी नहीं खरीदी मुझसे, किसी और से ले रहीं हैं क्या आजकल?” सब्जी वाले ने प्रश्नवाचक रूप में ज़ोर से पूछा।

“रुको भैया! मैं नीचे आती हूँ।” ऊपर से आवाज आई

उसके बाद महिला घर से नीचे उतर कर आई और सब्जी वाले के पास आकर धीरे से बोली – “भैया ! तुम हमारी घंटी मत बजाया करो। आजकल हमें सब्जी की जरूरत नहीं है।”

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“कैसी बात कर रही हैं बीबी जी ! सब्जी की जरूरत तो सभी को होती है वैसे भी खाना तो सेहत के लिए भी बहुत जरूरी होता है। लगता है आजकल आप किसी और से सब्जी लेती हो ?” सब्जीवाले ने फिर प्रश्नवाचक लहजे में कहा

“नहीं भैया! Covid की महामारी के कारण आजकल उनके पास अब कोई रोजगार नहीं है। बस किसी तरह से हम लोग अपने आप को जिंदा रखे हुए हैं।

जब सब ठीक होने लग जाएगा, घर में कुछ पैसे आएंगे, तो पहले की तरह तुमसे ही सब्जी लिया करूंगी। मैं किसी और से सब्जी नहीं खरीदती हूँ। तुम घंटी बजाते हो तो उन्हें बहुत बुरा लगता है, उन्हें अपनी मजबूरी पर गुस्सा आने लगता है। इसलिए भैया अब तुम हमारी घंटी मत बजाया करो।”

महिला कहकर अपने घर में वापिस जाने के लिए मुड़ी।

“अरे ओ बहन जी ! तनिक रुक जाओ। आपने अपनी तो कह ली, अब तनिक हमरी भी तो सुनती जाओ!

हम इतने बरस से आपको सब्जी दे रहे हैं । जब आपके अच्छे दिन थे, तब तो आपने हमसे खूब सब्जी और फल लिए थे। अब अगर कमबख्त इस कोरोना महामारी के कारण आप पर थोड़ी-सी परेशानी आ गई है, तो क्या हम आपको ऐसे ही छोड़ देंगे ?

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सुनो बहन जी, हम सब्जी वाले हैं, कोई 5 साल बाद आने वाले नेता जी तो है नहीं कि वादा करके छोड़ दें। रुके रहो दो मिनिट।”

इतना कहने के बाद सब्जी वाले ने एक थैली के अंदर टमाटर , आलू, प्याज, घीया, कद्दू और करेले डालने के बाद धनिया और मिर्च भी उसमें डाल दिया ।

सब्जी वाले की इस कारगुजारी से महिला हैरान थी। उसने तुरंत कहा – “भैया ! तुम मुझे उधार सब्जी दे रहे हो, तो कम से कम तोल तो लेते, और मुझे इसके पैसे भी बता देते। मैं तुम्हारा हिसाब लिख लूंगी और जब सब ठीक हो जाएगा तो तुम्हारा सारा हिसाब कर दूंगी।” महिला ने कहा।

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“वाह….. ये क्या बात हुई भला ? तोला तो इसलिए नहीं है कि कोई मामा अपने भांजी -भाँजे से पैसे नहीं लेता है। और बहिन ! मैं कोई अहसान भी नहीं कर रहा हूँ। ये सब तो यहीं से कमाया है, इसमें आपका भी हिस्सा है। गुड़िया के लिए ये आम रख रहा हूँ, और भाँजे के लिए मौसमी। बच्चों का खूब ख्याल रखना। ये कोरोना बीमारी बहुत बुरी है। और आखिरी बात सुन लो…. घंटी तो मैं जब भी इधर सब्जी बेचने आऊँगा, जरूर बजाऊँगा।”

इतना कहते हुये सब्जी वाले ने मुस्कुराते हुए दोनों थैलियाँ महिला के हाथ में थमा दीं।

अब महिला की आँखें मजबूरी की जगह ‘स्नेह के आँसू’ से भरी हुईं थीं।

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